Monday, 4 April 2016

हम सब एक हैं

बरगद के एक पेड़ पर बैठे सैकड़ों छोटे-बड़े पक्षी एक लम्बे समय से रहते चले आ रहे थे। इन पक्षियों का प्रेम इतना अधिक था कि वे दु:ख-सुख मिलकर सहते थे।

एक दिन वहां एक बहेलिया वृक्ष पर बैठे उन पक्षियों को देखकर सोचने लगा कि यदि वह इस वृक्ष के नीचे जाल लगा दे तो उसमें बहुत से पक्षी फंस सकते हैं।

वृक्ष पर बैठे एक बूढ़े कौए ने इस शिकारी को देखते ही समझ लिया कि हम में से बहुत से पक्षियों की जानें जाने वाली हैं। तभी उसने सब पक्षियों को बुलाकर कहा- 'भाइयो! इस वृक्ष के नीचे बैठा आदमी बहेलिया है, कुछ ही देर में यह हमें अपने जाल में फंसाने के लिए दाना डालेगा, उस दाने को तुम जहर समझना, क्योंकि इस दाने को चुगने का अर्थ है- जाल में फंसना। इसलिए भाइयों, होशियार रहना।'

कौए की बात सुनकर सब पक्षी सावधान हो गए और चुपचाप वृक्ष पर बैठे बहेलिए के जाने की प्रतीक्षा करते रहे।

तभी जंगली कबूतरों का एक झुंड उस वृक्ष पर आकर रूका। उन्होंने कौए की सीख पर कोई ध्यान नहीं दिया। सामने बिखरे दाने को देखकर उनके मुंह में पानी भर आया। दरअसल वे भूखे थे। भूखे के सामने अन्न पड़ा हो तो उसकी भूख और भी बढ़ जाती है।

यही हुआ उन कबूतरों के साथ, भूख से अंधे होकर वे बहेलिए द्वारा बिखेरे गए चावलों पर टूट पड़े। बहेलिए ने इतने सारे कबूतरों को जाल में फंसते देखा तो वह बहुत खुश हुआ। देखते ही देखते सारे कबूतर जाल में फंस गए तब उन्हें उस कौए की बात याद आई कि यह धोखा है।

अपनी ही भूल के कारण कबूतर भी शिकारी के जाल में फंस गए थे। अपनी इस सफलता पर बहेलिया बड़ा खुश हुआ। जबकि कबूतर रो रहे थे। उन्हें सामने ही मौत नजर आ रही थी।

कबूतरों के सरदार ने अपने साथियों को इस प्रकार उदास बैठे देखकर कहा- 'अरे मूर्खो! इस प्रकार उदास क्यों बैठे हो, संकट के समय घबराने से काम नहीं चलता। संकट के समय भी बुद्धि से काम लेना चाहिए। बुद्धिमान लोग सुख और दु:ख को समान ही समझते हैं। इसलिए हमें भी इस संकट से बचने के लिए हिम्मत से काम लेकर इस जाल समेत ही उड़ जाना चाहिए। हिम्मत...हिम्मत.. .यदि हमने इस समय हिम्मत से काम न लिया तो मृत्यु हम से अधिक दूर नहीं।'

अपने सरदार के इस जोश भरे भाषण को सुनकर सब कबूतरों में नई शक्ति आ गई, उन्होंने उसी समय जाल समेत उड़ना शुरू कर दिया। बहेलिए ने जब देखा कि कबूतर तो उसका जाल भी लेकर उड़ रहे हैं तो वह रोता-पीटता उनके पीछे भागा। उसे यह आशा कि शायद कबूतर जाल समते नीचे गिर पड़ेंगे कबूतर नहीं गिरे, बल्कि बहेलिया ही ठोकर खाकर ऐसा गिरा कि उसके मुंह से खून बहने लगा। वह रोने लगा- 'हाय! क्या इन पक्षियों में भी एकता होती है। सच है, एकता में बल होता है।' 

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